Saturday, February 20, 2010

आवश्यकता की पूर्ति से पहले आवश्यकता को पह्चानना जरुरी है


मानव अब तक अपनी आवश्यकता को पूरी करने के लिए निरंतर क्रियाशील है ही । किसी आसामान्य { मानसिक रोगी, अथवा बीमार } व्यक्ति को छोड़कर कोई भी मानव् ऐसा नहीं दिखाई देता कि वह अपनी आवश्यकता कि पूर्ति में नहीं लगा हो। बचपन से ही प्रत्येक बालक अपनी आवश्यकता कि पूर्ति का कोई न कोई डिजाईन banata है। उम्र के साथ डिजाईन में बदलाव होते रहते है इसी प्रकार जीते हुआ उम्र गुजर जाती है । यहाँ ध्यान देने के बात है कि किसी भी समय वर्तमान में उसकी आवश्यकता पूरी हो रही है ऐसा नजर नहीं आता है। भविष्य में इन needs कि पूरी होने कि संभावना पर और इस आशा के साथ जीने का कार्यक्रम बना रहता है । भविष्य कि सम्भावना पर कार्य करते हुए लोगो में क्षणिक उत्साह भी दिखता है वहीँ थकान व निराशा भी जगती रहती है। जिन लोगो को भविष्य में भी इन नीड्स कि पूर्ति हो ही नहीं सकती है ऐसा भास होता है उनके लिए आगे जीना क्यों है पर ही प्रश्न लग जाता है। ऐसे कई भिन्न भिन्न उदहारण हमे समाज परिवार में दिखाई पड़ते है।


मानव ने अपनी आवश्यकता को abtk pahchana नहीं है।


आवश्यकता कि पूर्ति वर्तमान में होती दिखाई पड़ती है तभी मैं [मानव] सुखी, समृद्ध व संतोषी हो पाता हूँ।

सह अस्तित्व वादी चिंतन से मानव कि सम्पूर्ण आवश्यकता पूर्ण होती है ऐसा प्रस्ताव दिया गया है।

आवश्यकता की पूर्ति व उसके कार्यक्रम में

१ सर्व प्रथम आवश्यकता को पहचानना।

२ आवश्यकता की पूर्ति का स्रोत ।

३ उस हेतु karyakram ।

४ तदनुसार उपलब्धि ।

५ उपलब्धि का मूल्याङ्कन ।