Thursday, April 6, 2017

आगामी जीवन विद्या परिचय शिविर 

11  से 17   मई  2017 

मानव चेतना विकास केन्द्र , पिवड़ाय, इंदौर, मध्य प्रदेश 

पंजीयन अनिवार्य 

सम्पर्क - प्रीति 9424961108    

Thursday, May 12, 2016

Agami Jeevan Vidya Parichay Shivir
19 - 25 May 2016
By - Ajay Dayma
Registration Compulsory: Contact - Priti - 9424961108 

Tuesday, July 14, 2015

Participation in Jaiveek Setu (Organic Food Market) at Indore




Wednesday, March 11, 2015

Parichay Shivir (Introduction workshop - Jivan Vidya)

Next Parichay shivir from 10th to 16th May 2015.

This workshop is for people who are new to Jivan Vidya concept.

Kindly confirm your registration with 

Mrs. Priti A. Wankhede - M.09414961108

Next Adhyayan Shivir Workshop details

Next Adhyayan shivir from 18th to 24th April 2015.

Kindly confirm your registration with 

Mrs. Priti A. Wankhede - M.09414961108

Products availability at MCVK, Indore center


Saturday, December 13, 2014

देशी गाय का गौ अमृत अर्क उपलब्ध है
संपर्क करे



अध्ययन शिविर का आगामी सत्र 08  से 14  फरवरी  2015  को होगा। 

Monday, December 1, 2014


Next Introductory Workshop on Jeevan Vidya at MCVK, Indore on 24 to 30 Dec. 2014.

Prabodhan by Ajay Dayma
Registration compulsory  

Sunday, October 12, 2014


मानव चेतना विकास केन्द्र की गौशाला


Kids Camp, During 02 - 08 Oct. 2014

अध्ययन शिविर, सत्र २ पूरा हुआ।  सभी सदस्यों में वास्तविकता की पहचान, समझ तदनुरूप परस्पर पूरकता में जीने की निष्ठा बनी। 

Tuesday, August 26, 2014

अध्ययन शिविर का दूसरा सत्र 
दिनांक 02 अक्टूबर से 08 अक्टूबर 2014 को होना निश्चित हुआ है 
इस सत्र में मानव व्यवहार दर्शन का पठन सह स्वयं में अध्ययन पूर्ण करेंगे 

Wednesday, August 13, 2014

2 वर्षीय  अध्ययन शिविर

मानव चेतना विकास केन्द्र , इंदौर में आरम्भ हो रहा है।  

प्रत्येक 2 माह में  7 से 10 दिन की अवधी होगी । 

कुल  12  सत्र  होंगे , 


केवल  2  से  3  शिविर में  भाग  लिये , अध्ययन  की रूचि हो तो पूर्व अनुमति या आगमन की सुचना अवश्य देवे ।  सम्पर्क  करे  - प्रीति  - 9424961108, वर्षा  - 9425901691 


प्रथम सत्र  15  से 21 अगस्त 2014 को  होगा ।   

Tuesday, September 28, 2010

हमारी आवश्यकता क्या है ?

अभी कुछ दिनोँ पहले एक स्कूल देखने का अवसर बना । यह स्कूल छोटे से ग्राम में है ज्यादातर बच्चे ग्राम के ही है । यह एक स्कूल है जो मुंबई के किसी सम्रद्ध व्यक्ति का है । जो पुरे मन से इस स्कूल को चलाते है । बहुत दिनोँ में ऐसा स्कूल देखने का अवसर बना जिसमे व्यक्ति कि पूरी निष्ठां बच्चो को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ देने की है । स्कूल से उनका कोई आर्थिक लाभ का आशय नहीं नज़र आया बल्कि जो जानकारी मिली उस अनुसार हर बार कुछ धन उन्हें लगाना ही होता है। हालाँकि उनसे मिलना नहीं हो सका।

स्कूल में कुछ बच्चो से बात हुई। प्रिंसिपल जी द्वारा रविवार का दिन होने से सिर्फ हॉस्टल के बच्चे चर्चा में बुलाये गए थे । हम सभी का चर्चा में उत्साह बना । क्लास ८-१० के बालक-बालिका थे। एक excercise के दौरान जब यह पूछा गया की वह सब बड़े होकर कैसे जीना चाहते है । क्या उनकी आवश्यकता है ? तब करीब ५० की क्लास में जवाब यह आया की वह

engineer-25

CA-6

Soldier-5

Doctor-8

Farmer-3

Businessman -3

बनना चाहते है । जवाब इतने त्वरित थे लगा की बच्चो ने तय कर रखा है की उनकी आवश्यकता क्या है और वह कैसे पूरी हो जाएगी ।

लगा की जो समाज के पास है वो ही समाज शिक्षा में व्यवस्था में परिवार में दोस्तों में टीवी में दे रहा है दिखा रहा है । मानव की आवश्यकता समझी नहीं गई इसीलिए समझाई नहीं जा पा रही है। हम सब अपनी वास्तविक आवश्यकताओ से कम में जीने का प्रयास कर रहे है। ऐसा जीते हुआ न स्वयं तृप्त होते है न ही समाज / परिवार तृप्त होता दिखाई पड़ता है

बच्चो से थोड़ी सी चर्चा करने पर सभी को लगने लगा की हमारी लिस्ट छोटी है उसे समृद्ध करना होगी । इस थोड़े से प्रयास में एक पूरा कार्यक्रम जीने का निकलने लगा । यह भी लगा की सब अपनी आवश्यकता को देखने लग सकते थोडा सा ध्यान दिलाने की जरूरत हो सकती है।

समय अभाव के कारन चर्चा अधूरी रही क्योंकि कल उनकी परीक्षा भी थी।

मानवीय चेतना अनुसार मेरी आवश्यकता दो प्रकार की है।

1-- कुछ सामान की है {Material need} : जैसे की खाना, कपडा , घर , कुछ छोटे मोटे साधन -- यह सब मेरे शरीर के लिए आवश्यक है। उसे उपयोगी व स्वस्थ्य रखने के लिए ।

२------------ to be continued.  

Saturday, February 20, 2010

आवश्यकता की पूर्ति से पहले आवश्यकता को पह्चानना जरुरी है


मानव अब तक अपनी आवश्यकता को पूरी करने के लिए निरंतर क्रियाशील है ही । किसी आसामान्य { मानसिक रोगी, अथवा बीमार } व्यक्ति को छोड़कर कोई भी मानव् ऐसा नहीं दिखाई देता कि वह अपनी आवश्यकता कि पूर्ति में नहीं लगा हो। बचपन से ही प्रत्येक बालक अपनी आवश्यकता कि पूर्ति का कोई न कोई डिजाईन banata है। उम्र के साथ डिजाईन में बदलाव होते रहते है इसी प्रकार जीते हुआ उम्र गुजर जाती है । यहाँ ध्यान देने के बात है कि किसी भी समय वर्तमान में उसकी आवश्यकता पूरी हो रही है ऐसा नजर नहीं आता है। भविष्य में इन needs कि पूरी होने कि संभावना पर और इस आशा के साथ जीने का कार्यक्रम बना रहता है । भविष्य कि सम्भावना पर कार्य करते हुए लोगो में क्षणिक उत्साह भी दिखता है वहीँ थकान व निराशा भी जगती रहती है। जिन लोगो को भविष्य में भी इन नीड्स कि पूर्ति हो ही नहीं सकती है ऐसा भास होता है उनके लिए आगे जीना क्यों है पर ही प्रश्न लग जाता है। ऐसे कई भिन्न भिन्न उदहारण हमे समाज परिवार में दिखाई पड़ते है।


मानव ने अपनी आवश्यकता को abtk pahchana नहीं है।


आवश्यकता कि पूर्ति वर्तमान में होती दिखाई पड़ती है तभी मैं [मानव] सुखी, समृद्ध व संतोषी हो पाता हूँ।

सह अस्तित्व वादी चिंतन से मानव कि सम्पूर्ण आवश्यकता पूर्ण होती है ऐसा प्रस्ताव दिया गया है।

आवश्यकता की पूर्ति व उसके कार्यक्रम में

१ सर्व प्रथम आवश्यकता को पहचानना।

२ आवश्यकता की पूर्ति का स्रोत ।

३ उस हेतु karyakram ।

४ तदनुसार उपलब्धि ।

५ उपलब्धि का मूल्याङ्कन ।

Thursday, August 6, 2009

मनुष्य सुखी होना चाहता है.

  • "मनुष्य सुखी होना चाहता है । सभी आदमी सुखी होने के लिए कोई न कोई प्रयास करता ही हैं । सुखी होने के क्रम में कभी हम सोचते है कि सुविधा, संग्रह से सुखी हो जायेंगे, कभी जप-तप से सुखी हो जायेंगे, है किंतु इन प्रयासों से किसी को तृप्ति हुआ और इसका प्रमाण किसी को सुख मिला, इसका प्रमाण मिला नही "।
  • "समझदारी से सुखी नासमझी से दुखी। अभी तक सारा संसार जूझता रहा । पहले जूझता रहा तप करो-जप करो, योग करो, सन्यासी हो जाओ तो सुखी हो जाओगे [आदर्श वाद]। लोग इसका भी प्रयोग किए कोई प्रमाण मिला नहीं। परम्परा बनी नही। दूसरी बार यह जूझे की खूब वस्तु इकठ्ठा [भौतिक वाद] कर लो सुखी हो जाओगे उससे भी सुखी हुए नही।"
  • "दोनों विधि से जीते हुए मानव तृप्त नही हुआ। समझदारी ध्रुविकत नही हुआ। अस्तित्व को समझने में कहीं न कहीं भूल हो गयी फलस्वरूप समझदारी की परम्परा नही बनी। समझदारी संपन्न मानव ,मानव के साथ न्यायपूर्वक और प्रकृति[जीव, वनस्पति, पदार्थ] के साथ नियम पूर्वक, संतुलित रूप से जी पाता है। "
  • "सह अस्तित्व वाद के तहत जो प्रस्ताव मानव कुल के समक्ष रखा है । उसे समझने के बाद मानव का वयवस्था में जीना बन जाता है , फलस्वरूप स्वयं त्रप्ति पूर्वक जीते हुए व्यवस्था में भागीदार हो पाते हैं।"
  • "अस्तित्व में मानव को छोड़कर तीनो अवस्थाये परस्पर पूरक है। मानव के पूरक होने की आवश्यकता हो गई है। पूरकता के रूप में ही मानव का व्यवस्था में जीना बन पाता है यह व्यक्तिवाद, भोगवाद के आधार पर कभी नही बन पाता है।" ------- [ ए नागराज जी -------''जीवन विद्या एक परिचय" से]