- "मनुष्य सुखी होना चाहता है । सभी आदमी सुखी होने के लिए कोई न कोई प्रयास करता ही हैं । सुखी होने के क्रम में कभी हम सोचते है कि सुविधा, संग्रह से सुखी हो जायेंगे, कभी जप-तप से सुखी हो जायेंगे, है किंतु इन प्रयासों से किसी को तृप्ति हुआ और इसका प्रमाण किसी को सुख मिला, इसका प्रमाण मिला नही "।
- "समझदारी से सुखी नासमझी से दुखी। अभी तक सारा संसार जूझता रहा । पहले जूझता रहा तप करो-जप करो, योग करो, सन्यासी हो जाओ तो सुखी हो जाओगे [आदर्श वाद]। लोग इसका भी प्रयोग किए कोई प्रमाण मिला नहीं। परम्परा बनी नही। दूसरी बार यह जूझे की खूब वस्तु इकठ्ठा [भौतिक वाद] कर लो सुखी हो जाओगे उससे भी सुखी हुए नही।"
- "दोनों विधि से जीते हुए मानव तृप्त नही हुआ। समझदारी ध्रुविकत नही हुआ। अस्तित्व को समझने में कहीं न कहीं भूल हो गयी फलस्वरूप समझदारी की परम्परा नही बनी। समझदारी संपन्न मानव ,मानव के साथ न्यायपूर्वक और प्रकृति[जीव, वनस्पति, पदार्थ] के साथ नियम पूर्वक, संतुलित रूप से जी पाता है। "
- "सह अस्तित्व वाद के तहत जो प्रस्ताव मानव कुल के समक्ष रखा है । उसे समझने के बाद मानव का वयवस्था में जीना बन जाता है , फलस्वरूप स्वयं त्रप्ति पूर्वक जीते हुए व्यवस्था में भागीदार हो पाते हैं।"
- "अस्तित्व में मानव को छोड़कर तीनो अवस्थाये परस्पर पूरक है। मानव के पूरक होने की आवश्यकता हो गई है। पूरकता के रूप में ही मानव का व्यवस्था में जीना बन पाता है यह व्यक्तिवाद, भोगवाद के आधार पर कभी नही बन पाता है।" ------- [ ए नागराज जी -------''जीवन विद्या एक परिचय" से]
This center is working to ensure right understanding, right behavior, right work at individual level that means SAMADHAN,SAMRIDHI for human being. MCVK is working on the basis of SAH ASTITVA PRINCIPAL Propounded by respected shri A Nagraj ji of Amarkantak, MP, India.
Thursday, August 6, 2009
मनुष्य सुखी होना चाहता है.
Tuesday, August 4, 2009
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