Manav Chetna Vikas Kendra, Indore
This center is working to ensure right understanding, right behavior, right work at individual level that means SAMADHAN,SAMRIDHI for human being. MCVK is working on the basis of SAH ASTITVA PRINCIPAL Propounded by respected shri A Nagraj ji of Amarkantak, MP, India.
Thursday, April 6, 2017
Thursday, May 12, 2016
Wednesday, March 11, 2015
Parichay Shivir (Introduction workshop - Jivan Vidya)
Next Parichay shivir from 10th to 16th May 2015.
Next Adhyayan Shivir Workshop details
Next Adhyayan shivir from 18th to 24th April 2015.
Monday, December 1, 2014
Tuesday, August 26, 2014
Wednesday, August 13, 2014
2 वर्षीय अध्ययन शिविर
मानव चेतना विकास केन्द्र , इंदौर में आरम्भ हो रहा है।
प्रत्येक 2 माह में 7 से 10 दिन की अवधी होगी ।
कुल 12 सत्र होंगे ,
केवल 2 से 3 शिविर में भाग लिये , अध्ययन की रूचि हो तो पूर्व अनुमति या आगमन की सुचना अवश्य देवे । सम्पर्क करे - प्रीति - 9424961108, वर्षा - 9425901691
प्रथम सत्र 15 से 21 अगस्त 2014 को होगा ।
Tuesday, May 6, 2014
Tuesday, September 28, 2010
हमारी आवश्यकता क्या है ?
अभी कुछ दिनोँ पहले एक स्कूल देखने का अवसर बना । यह स्कूल छोटे से ग्राम में है ज्यादातर बच्चे ग्राम के ही है । यह एक स्कूल है जो मुंबई के किसी सम्रद्ध व्यक्ति का है । जो पुरे मन से इस स्कूल को चलाते है । बहुत दिनोँ में ऐसा स्कूल देखने का अवसर बना जिसमे व्यक्ति कि पूरी निष्ठां बच्चो को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ देने की है । स्कूल से उनका कोई आर्थिक लाभ का आशय नहीं नज़र आया बल्कि जो जानकारी मिली उस अनुसार हर बार कुछ धन उन्हें लगाना ही होता है। हालाँकि उनसे मिलना नहीं हो सका।
स्कूल में कुछ बच्चो से बात हुई। प्रिंसिपल जी द्वारा रविवार का दिन होने से सिर्फ हॉस्टल के बच्चे चर्चा में बुलाये गए थे । हम सभी का चर्चा में उत्साह बना । क्लास ८-१० के बालक-बालिका थे। एक excercise के दौरान जब यह पूछा गया की वह सब बड़े होकर कैसे जीना चाहते है । क्या उनकी आवश्यकता है ? तब करीब ५० की क्लास में जवाब यह आया की वह
engineer-25
CA-6
Soldier-5
Doctor-8
Farmer-3
Businessman -3
बनना चाहते है । जवाब इतने त्वरित थे लगा की बच्चो ने तय कर रखा है की उनकी आवश्यकता क्या है और वह कैसे पूरी हो जाएगी ।
लगा की जो समाज के पास है वो ही समाज शिक्षा में व्यवस्था में परिवार में दोस्तों में टीवी में दे रहा है दिखा रहा है । मानव की आवश्यकता समझी नहीं गई इसीलिए समझाई नहीं जा पा रही है। हम सब अपनी वास्तविक आवश्यकताओ से कम में जीने का प्रयास कर रहे है। ऐसा जीते हुआ न स्वयं तृप्त होते है न ही समाज / परिवार तृप्त होता दिखाई पड़ता है
बच्चो से थोड़ी सी चर्चा करने पर सभी को लगने लगा की हमारी लिस्ट छोटी है उसे समृद्ध करना होगी । इस थोड़े से प्रयास में एक पूरा कार्यक्रम जीने का निकलने लगा । यह भी लगा की सब अपनी आवश्यकता को देखने लग सकते थोडा सा ध्यान दिलाने की जरूरत हो सकती है।
समय अभाव के कारन चर्चा अधूरी रही क्योंकि कल उनकी परीक्षा भी थी।
मानवीय चेतना अनुसार मेरी आवश्यकता दो प्रकार की है।
1-- कुछ सामान की है {Material need} : जैसे की खाना, कपडा , घर , कुछ छोटे मोटे साधन -- यह सब मेरे शरीर के लिए आवश्यक है। उसे उपयोगी व स्वस्थ्य रखने के लिए ।
२------------ to be continued.
Saturday, February 20, 2010
आवश्यकता की पूर्ति से पहले आवश्यकता को पह्चानना जरुरी है
मानव ने अपनी आवश्यकता को abtk pahchana नहीं है।
आवश्यकता कि पूर्ति वर्तमान में होती दिखाई पड़ती है तभी मैं [मानव] सुखी, समृद्ध व संतोषी हो पाता हूँ।
सह अस्तित्व वादी चिंतन से मानव कि सम्पूर्ण आवश्यकता पूर्ण होती है ऐसा प्रस्ताव दिया गया है।
आवश्यकता की पूर्ति व उसके कार्यक्रम में
१ सर्व प्रथम आवश्यकता को पहचानना।
३ उस हेतु karyakram ।
४ तदनुसार उपलब्धि ।
५ उपलब्धि का मूल्याङ्कन ।
Thursday, August 6, 2009
मनुष्य सुखी होना चाहता है.
- "मनुष्य सुखी होना चाहता है । सभी आदमी सुखी होने के लिए कोई न कोई प्रयास करता ही हैं । सुखी होने के क्रम में कभी हम सोचते है कि सुविधा, संग्रह से सुखी हो जायेंगे, कभी जप-तप से सुखी हो जायेंगे, है किंतु इन प्रयासों से किसी को तृप्ति हुआ और इसका प्रमाण किसी को सुख मिला, इसका प्रमाण मिला नही "।
- "समझदारी से सुखी नासमझी से दुखी। अभी तक सारा संसार जूझता रहा । पहले जूझता रहा तप करो-जप करो, योग करो, सन्यासी हो जाओ तो सुखी हो जाओगे [आदर्श वाद]। लोग इसका भी प्रयोग किए कोई प्रमाण मिला नहीं। परम्परा बनी नही। दूसरी बार यह जूझे की खूब वस्तु इकठ्ठा [भौतिक वाद] कर लो सुखी हो जाओगे उससे भी सुखी हुए नही।"
- "दोनों विधि से जीते हुए मानव तृप्त नही हुआ। समझदारी ध्रुविकत नही हुआ। अस्तित्व को समझने में कहीं न कहीं भूल हो गयी फलस्वरूप समझदारी की परम्परा नही बनी। समझदारी संपन्न मानव ,मानव के साथ न्यायपूर्वक और प्रकृति[जीव, वनस्पति, पदार्थ] के साथ नियम पूर्वक, संतुलित रूप से जी पाता है। "
- "सह अस्तित्व वाद के तहत जो प्रस्ताव मानव कुल के समक्ष रखा है । उसे समझने के बाद मानव का वयवस्था में जीना बन जाता है , फलस्वरूप स्वयं त्रप्ति पूर्वक जीते हुए व्यवस्था में भागीदार हो पाते हैं।"
- "अस्तित्व में मानव को छोड़कर तीनो अवस्थाये परस्पर पूरक है। मानव के पूरक होने की आवश्यकता हो गई है। पूरकता के रूप में ही मानव का व्यवस्था में जीना बन पाता है यह व्यक्तिवाद, भोगवाद के आधार पर कभी नही बन पाता है।" ------- [ ए नागराज जी -------''जीवन विद्या एक परिचय" से]